खुद की कीमत को पहचानो। Know your own worth.
खुद की कीमत को पहचानो। Know your own worth. आत्म-मंथन: करो-खुद को पहचानो। अपने पुत्र को चेतावनी और प्रेम दिखाते हुये अगर मुझे, उसे अपनी लेखनी में कुछ भेजना हो, तो इस शिक्षा को ही भेजना चाहूंगी। तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। नीतिवचन 3:5।
“यदि कोई अन्यथा सिखाए, और हितकर वचनों को, यहां तक कि हमारे प्रभु यीशु मसीह के वचनों को, और उस उपदेश को जो भक्ति के अनुसार है, न माने; वह घमण्ड करता है, और कुछ नहीं जानता, वरन प्रश्नों और शब्दों के झगड़ों पर ध्यान देता है, जिस से डाह, झगड़ा, रेलिंग, और बुरी कल्पनाएं आती हैं। भ्रष्ट मनवालों और सत्य से निराश लोगों से मिथ्या वाद-विवाद करना, यह समझकर कि लाभ भक्ति है; ऐसे लोगों से दूर हो जाओ”।
सन्तोष सहित भक्ति करने से बड़ा लाभ होता है।
क्योंकि हम इस जगत में कुछ नहीं लाए, और निश्चय है, कि हम कुछ भी नहीं कर सकते। और हम भोजन और वस्त्र पाकर उसी से सन्तुष्ट रहें। परन्तु जो धनी होंगे, वे ऐसी परीक्षा और फन्दे में, और बहुत सी मूढ़ और हानिकारक अभिलाषाओं में फंसेंगे, जो मनुष्यों को विनाश और विनाश में डुबा देती हैं।
रुपयों का लोभ सब विपत्ति की जड़ है, जिसे कितनों ने लालच करके विश्वास से भटका और बहुत दुखों से अपने आप को छेद लिया है।
- हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग जा; और धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, सब्र, और नम्रता का अनुसरण करो।
- विश्वास की अच्छी लड़ाई लड़ो, अनन्त जीवन को धारण करो, जिसे तुम भी बुलाते हो, और बहुत गवाहों के सामने एक अच्छा पेशा किया है।
- मैं तुझे परमेश्वर के साम्हने आज्ञा देता हूं, जो सब कुछ जिलाता है, और मसीह यीशु के साम्हने, जिस ने पुन्तियुस पीलातुस के साम्हने अच्छा अंगीकार किया था; कि तू इस आज्ञा को निष्कलंक, और हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने तक अटल बना रहे: जो अपके समय में वह बताए, कि कौन धन्य और एकमात्र प्रधान, राजाओं का राजा, और प्रभुओं का यहोवा है;
जिसके पास केवल अमरता है, वह उस ज्योति में वास करता है जिस तक कोई पहुंच नहीं सकता; जिसे किसी मनुष्य ने नहीं देखा, और न देख सकता है; उसका आदर और पराक्रम सदा बना रहे। तथास्तु।
- पर जीवते परमेश्वर पर, जो हमें भोगने के लिथे सब कुछ बहुतायत से देता है; कि वे भलाई करें, और भले कामों के धनी हों, और बांटने को तैयार हों, और बातें करने को तैयार हों; आने वाले समय के विरुद्ध अपने लिये अच्छी नेव रखना, कि वे अनन्त जीवन को थामे रहें।
- हे तीमुथियुस, अपक्की अपक्की अपक्की अपक्की बातोंकी रक्षा कर, और अपवित्र और व्यर्थ बकबक, और मिथ्या कहलानेवाले विज्ञान के विरोध से दूर रह।
- जिन को माननेवालों ने विश्वास के विषय में भूल की है।
- कृपा आप पर बनी रहे।
- तथास्तु।
1. खुद को पहचानो।
- बैसाखियों के सहारे ना चलें।
- शंकालु ना बनें।
- शंका, विश्वास को खत्म कर देती है।
- खुद की कोशिशों से ही उपलब्धि पा सकते हैं। “बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता”।
- लोगों के लिये जीना सीखें, सहारा बनें, बोझ नहीं।
2. प्रेरणा लें, और सीखते रहें।
- खुद को प्रोत्साहित रखें।
- एक हार से रुक ना जायें-आगे बढ़ें।
- कोई भी जन्मजात योग्य नहीं होता।
- अपनी योग्यता और रुचियों को पहचानें।
- आप भी किसी एक दो गुणों में औरों से अधिक अच्छे हैं, खुद को तलाशेंगे तो जान पायेंगे।
- खुद से प्यार करें।
- कभी कभी खुद को खुश करें, बच्चा बन कर अपनी मन की बातें दूसरों से कह डालें।
3. ईश्वर ने आपको अद्भुत, और असीम शक्ति दी है, यकीन कीजिये।
- ईश्वर की शक्तियों पर भरोसा रखें।
- प्रार्थना और ध्यान में समय बितायें।
- एक आप और एक ईश्वर की शक्ति, मिल कर वह सब कर सकते हैं, जो आप करना चाहते हैं, बस प्रयास करते रहें।
- दूसरों की उपलब्धि से बैर ना करें।
- प्रेम से स्वीकार करें कि लोग आपसे बेहतर भी हो सकते हैं, और आप भी चाहें तो और बेहतर बन सकते हैं।
4. अपने आप को, असली स्वरूप को, अपने अस्तित्व को कभी ना भूलें।
- कभी भी हार ना मानें।
- संघर्ष करते रहें, हार मान लेना, कभी भी समाधान नहीं है, बल्कि ये सोचें कि हर बार हार से जीत तक जाने का एक और कदम बाकी है।
- शक्तिशाली बनें।
- सामर्थ वान और धैर्यवान लोग ही सभ्य समाज की रचना कर सकते हैं।
5. संकल्प कीजिये कि आप प्रति दिन बेहतर से बेहतरीन की ओर बढ़ेंगे।
- अपनी मानसिकता को स्थिर कीजिये, मनोभावों पर संयम रखिये।
- विरोधी और उलझाने वाले विचारों को मनन और चिंतन द्वारा दूर कीजिये।
- अपने कार्यों को बख़ूबी अच्छे भाव से पूर्ण कीजिये ताकि आत्म संतुष्टि प्राप्त हो।
6. किसी भी व्यक्ति विशेष के पिछलग्गू ना बनें।
- सराहने योग्य केवल ईश्वर है।
- किसी और को आप सराहें तो इतना भी नहीं कि ईश्वर को भूल कर वह विशेष व्यक्ति आपका ईश्वर बन जाये।
- सबसे अच्छे परिणाम प्राप्त करना है तो कठोर परिश्रम, और अनुशासन जरूरी है।
- अनुशासन और निरंतर प्रयास से बड़े बड़े कामों में सहज ही सफलता मिल जाती है।
7. सिद्ध कोई भी नहीं है, सब में कुछ ना कुछ कमी है।
- निरन्तर सिद्धता की ओर बढ़ते जाना चाहिये।
- मन-वचन-कर्म में सामंजस्य बिठाना सिद्व होने की पहली सीढ़ी है।
- अटूट विश्वास और पक्का इरादा, यानी निश्चित दृढ़ता, सफलता के लिए जरूरी हथियार है, अगर सफल होना है तो इसे अपने से कभी दूर मत करो।
8. आत्म नियंत्रण रखो।
- याद रखो, आवेश, क्रोध, अधीरता हमेशा घातक होती है।
- सफलता के लिये साहस और अंदरूनी बल चाहिये।
- खुद को ललकारो। खुद को प्रेरित करो।
- बाहरी प्रेरणा अस्वाभाविक और क्षणिक होती है, जबकि भीतरी प्रेरणा हमेशा ही निश्चित और भय पर प्रहार करके विजयी होने वाली होती है।
- अपनी सोच को छोटा मत करो।
- कम से कम सोचने को तो हम सब स्वतंत्र हैं, तो चाहे छोटा सोचें या बड़ा, समय और मेहनत उतनी ही खर्च होगी, तो क्यों ना बड़ा सोचें।
9. सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहो।
- विश्वास के लिये हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण पुस्तकें, वीडियो और ऑडियो को अपना मित्र बना लो।
- दूसरों के लिए खुद भी विश्वाशयोग्य रहो।
- याद रखें-मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि स्वयं परमेश्वर की कृति और स्वरूप में सृजित है।
- अपने जीवन को चाहे आयु 70 वर्ष हो या 80 या ज्यादा कहो तो 90, सचरित्र मानव बन कर बिताओ।
- मनुष्य की उन्नति का रहस्य केवल यही है, कि वो अपनी आत्म शक्तियों के सहारे अपने मष्तिष्क की विशालता को पहचान कर आगे बढ़ सकता है।
- क्रोध को त्याग दो।
- क्रोध में मनुष्य अपना ही नाश करता है।
- मन पर काबू रखो।
- मन पर काबू रखना यानि किला फतह करना/ जीत लेने जैसा है।
10. समृद्ध विचार होंगे तो ही बरकत मिलेगी और फिर समृद्धि कदम चूमेगी।
- उच्च कोटि की मानसिकता अपनाएं।
- चिर स्मृति बनायें।
- सृष्टि और सृष्टिकर्ता को जानें, उनके संपर्क में रहें और उनसे तालमेल बिठायें।
- खुद को प्रकृति से अलग ना करें, मनसा वाचा कर्मणा यानि मन वचन और कर्म से प्रकृति के नजदीक रहें।
- भूतकाल और भविष्य काल, काल हैं वर्तमान ही आपके वश में है, इसे सही तरह से उपयोग करें। जीवन ऐसा जियें कि यादगार बने।
- भय, शंका, चिंता, तनाव, निराशा सब कुछ त्याग दीजिये, ये ईश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं हैं।
11. आशा विश्वास और प्रेम का जीवन बितायें।
- सृजनात्मक बनिये।
- दूसरों के लिये प्रेरणाश्रोत बनें।
- लोग आपका उदाहरण दें, ऐसा प्रार्थना मय जीवन हो आपका।
- सत-चरित्र और मानवता वादी विचारों के धनी बनिये।
- लालच, मृगतृष्णा, झूठी शान त्याग दीजिये।
- कर्म के बिना कुछ मिलना मुश्किल है, अतः कुछ भला चाहते हो तो कुछ ना कुछ अच्छे कर्म करते रहो।
- “बिना खोये कुछ नहीं मिलता”। हर चीज की कुछ ना कुछ कीमत होती है जो अदा करनी पड़ती है।
12. धृणा और ईर्ष्या को जितनी जल्दी त्याग दो, उतना अच्छा।
- सर्वगुण सम्पन्न बनना चाहते हो तो बैर, घृणा, ईर्ष्या, बुराई को त्याग दीजिये।
- मन का कूड़ा साफ कीजिये।
- अपनी गलतियों को परमेश्वर के सामने रख दीजिए, और पवित्र आत्मा द्वारा शुद्द होकर नये मन का साथ जीवन बिताना अच्छा है।
- बुराई एक दम से दूर नहीं हो सकती, पर निरंतर प्रयास से ही नए और उच्च विचारों में बढ़ोतरी होती है।
- सतत और निरंतर अभ्यास से विचारों की क्रांति को जाग्रत/जागरूक रखें।
13. साहसी बनें।
- साहस में अजब की ताकत होती है, जो डर और निराशा को दूर करके धैर्य से आस्था, और आस्था से विकास की राह पे ले जाता है।
- अपने मन को प्रार्थना और ध्यान मनन के द्वारा ऐसा सकारात्मक चारा खिलायें जिससे दिमाग मजबूत हो, कि धन से भी ज्यादा जरूरी अच्छी मानसिक आदतें हैं।
- डर के आगे जीत है।
- याद रखिये-मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
- जीत या हार, सफलता या असफलता सब आपके मनोभावों और मानसिक सोचों का परिणाम है।
14. अपने स्वामी खुद बनें।
- क्रोध का त्याग करके प्रेम द्वारा जीत को हांसिल कीजिये।
- शांति, संयम, और विश्वास द्वारा परोपकार का जीवन जियें।
- लालसाओं को त्याग दीजिये।
- आत्म संतुलन को बनाएं, बिगाड़ें नहीं।
- मन पर काबू तो सब पे काबू।
15. अपना मूल्य पहचानो; और कुछ ऐसा करो, कि एक इतिहास बन जाये।
- इतिहास पढ़ो, लिखो। पर और भी जरूरी है ऐतिहासिक बनो।
- कुछ ऐसा करो, कि एक इतिहास बन जाये।
- क्रोध से बचें: घातक है हर्ष और विषाद की अति।
- ज्यादा खुशी या दुख की अधिकता बहुत विनाशकारी हो सकती है, ये मनुष्य को पागल भी बना सकती है।
16. खुद में बल, शौर्य और आत्म-विश्वास जगायें।
- परमात्मा पर विश्वास।
- हां और आमीन की ताकत याद रखो।
- ईश्वर भी उनकी सहायता करते हैं, जो खुद अपनी सहायता कर सकते हैं। आलसियों से परमेश्वर प्रसन्न नहीं होते।
- आत्मा की पुकार सुनो। आत्मा कुछ कहती है…!
- अयोग्य: योग्यता से भी बढ़ कर बन सकते हैं। निखार की जरूरत है।
- अपना मूल्यांकन करें, खुद को पहचानें, परीक्षण करें।
17. बुराई बुरी चीज है, इससे परहेज कीजिये।
- खरपतवार को साफ करें, ये आपके जीवन रूपी खेत की सही फसल को नष्ट कर देगी।
- बुरी आदतों को त्याग दीजिये। गाली देना। झूठ बोलना। चिढ़। जलन। बुराई करना। लालच। बुरी दृष्टि रखना। हत्या। आदि।
- असफलताओं का मुख्य कारण-सफलता के लिये सही समय पर अनदेखी और सफल लोगों के प्रति ईर्ष्या ही है।
18. अपनी पांचों इन्द्रियों को अपने वश में रखें।
- लापरवाही और देर से किये गए काम भी आलस और काम टालने की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
- अपने स्वभाव में परिवर्तन लाएं।
- बुरी आदतों को त्याग कर नई और अच्छी आदतों को अपनायें।
- नामुमकिन और मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर आप मन में उसे पूरा करने की ठान लें तो।
- नकारात्मक या ऋणात्मक भाव को त्याग दीजिये: क्रोध, विरोध, झूठ, ईर्ष्या, हत्या, बुरी दृष्टि, लालच, अविश्वास, डर, चोरी
19. प्रफुल्लित रहना सीखिए।
- खुशी के पलों में खुश रहिये।
- छोटी छोटी बातों में खुशियां खोजिये।
- याद कीजिये खुशनुमा पल और चेहरों को।
- सबसे बेहतरीन दिनों में वापस लौटें और मन को आनंद से भर लीजिये।
- कभी कभी बिना वजह मुस्कुरा लीजिये।
- खुशी एक फैलने वाला रोग है, मुस्कान हमेशा खुशी को बिखेरती है, तो हँसिये और हँसाईये।
20. उदासियों को त्याग दीजिये।
- निराशजनक स्थितियां मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल में उपलब्ध होती हैं, उन्हें वहीं रहने दीजिए, घर मत लाइये; यानि मानसिक विष मत फैलाइये।
- डर, तनाव, निराशा, नकारात्मक चिंतन, और अस्थिरता मन जीवन को बुझा देता है। इस वेदना से बचिये।
- डाँवाडोल और असमंजस वाली संदेहास्पद परिस्थितियों से खुद को बाहर लाएं।
- भय के भूत से मुक्ति पाएं।
- भ्रम जाल से खुद को बचा कर रखें।
- आशंका और अति से बचें।
- याद रखिये-जैसी जिसकी करनी, वैसी उसकी भरनी।
21. किफायती बनें। व्यर्थ के खर्चों से बचें।
- नुकसानदायक बचत ना करें।
- कंजूस ना बनें। कंजूसी बुरी चीज है। अगर आप सक्षम हैं तो जहां जितना खर्च जरूरी है, अवश्य करें।
- बचत लाभदायक है।
- व्यावहारिक बनिये।
- झूठी शान ना दिखाएँ।
- नियम से चलिये।
- प्राकृतिक संसाधनों को समझें और समन्वय स्थापित करने की सोचें।
22. अपनी सेवा और बुलाहट के बारे में सोचो।
- तुम मेरे मित्र हो, यदि तुम वह सब करते हो जो मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं। अब से मैं तुझे दास नहीं कहूंगा; क्योंकि दास नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करता है; परन्तु मैं ने तुझे मित्र कहा है; क्योंकि जो कुछ मैं ने अपने पिता के विषय में सुना है, सब बातें तुम्हें बता दी हैं।
- क्योंकि हे भाइयो, तुम अपनी बुलाहट को देखते हो, कि न तो शरीर के अनुसार बहुत से पण्डित, न बहुत पराक्रमी, और न बहुत रईस कहलाए जाते हैं: परन्तु परमेश्वर ने जगत की मूढ़ लोगों को चुन लिया है, कि बुद्धिमानों को चकमा दे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि सामर्थी वस्तुओं को उलझा दें; और जो वस्तुएं हैं, और जो तुच्छ हैं, उन को परमेश्वर ने चुन लिया है, वरन जो कुछ नहीं हैं, उन को व्यर्थ कर दिया है।
23. कोई प्राणी घमण्ड न करे।
- परन्तु उसी में से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये बुद्धि, और धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा ठहराया गया है: कि जैसा लिखा है, कि जो महिमा करे, वह प्रभु में महिमा करे।
- तुम एक चुनी हुई पीढ़ी, एक शाही याजकों का समाज, एक पवित्र राष्ट्र, एक विशिष्ट लोग हो; जिस ने तुझे अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसका गुणगान करना। जो पहिले समय में प्रजा नहीं थे, परन्तु अब परमेश्वर की प्रजा हैं, जिन पर दया न हुई थी, परन्तु अब दया की है।
- हे प्रियों, मैं तुम से परदेशियों और तीर्थयात्रियों के समान बिनती करता हूं, शरीर की अभिलाषाओं से दूर रहो, जो आत्मा से लड़ती हैं; अन्यजातियों के बीच अपनी बातचीत ईमानदारी से करते हुए, कि जब वे तुम्हारे खिलाफ कुकर्मी के रूप में बोलते हैं, तो वे तुम्हारे अच्छे कामों के द्वारा, जिन्हें वे देख सकते हैं, वे दण्ड के दिन परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं।
यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, और तेरे पांव को फन्दे में फंसने न देगा। नीतिवचन 3:26