नीतिवचन, सभोपदेशक, श्रेष्ठगीत में “मन” से सबंधित बाइबल के पद (Bible verses on “mind” in Proverbs, Ecclesiastes, Song of Solomon)
नीतिवचन, सभोपदेशक, श्रेष्ठगीत में “मन” से सबंधित बाइबल के पद (Bible verses on “mind” in Proverbs, Ecclesiastes, Song of Solomon)

नीतिवचन 1:23, 2:2, 3:5, 4:1, 4, 21, 23,
नीतिवचन 1:23, 2:2, 3:5, 4:1, 4, 21, 23,
- तुम मेरी डांट सुन कर मन फिराओ; सुनो, मैं अपनी आत्मा तुम्हारे लिये उण्डेल दूंगी; मैं तुम को अपने वचन बताऊंगी। नीतिवचन 1:23
- और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगा कर सोचे; नीतिवचन 2:2
- तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। नीतिवचन 3:5
- हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। नीतिवचन 4:1
- और मेरा पिता मुझे यह कह कर सिखाता था, कि तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे; तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा। नीतिवचन 4:4
- इन को अपनी आंखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। नीतिवचन 4:21
- सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है। नीतिवचन 4:23

नीतिवचन 6:14, 25, 7:1, 24, 25,
नीतिवचन 6:14, 25, 7:1, 24, 25,
- उसके मन में उलट फेर की बातें रहतीं, वह लगातार बुराई गढ़ता है और झगड़ा-रगड़ा उत्पन्न करता है। नीतिवचन 6:14
- उसकी सुन्दरता देख कर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपने कटाक्ष से फंसाने न पाए; नीतिवचन 6:25
- हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़। नीतिवचन 7:1
- अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातों पर मन लगाओ। नीतिवचन 7:24
- तेरा मन ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे, और उसकी डगरों में भूल कर न जाना; नीतिवचन 7:25

नीतिवचन 8:5, 10:20, 11:20, 30, 12:20, 23, 25
नीतिवचन 8:5, 10:20, 11:20, 30, 12:20, 23, 25
- हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो नीतिवचन 8:5
- धर्मी के वचन तो उत्तम चान्दी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हलका होता है। नीतिवचन 10:20
- जो मन के टेढ़े है, उन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह खरी चाल वालों से प्रसन्न रहता है। नीतिवचन 11:20
- धर्मी का प्रतिफल जीवन का वृक्ष होता है, और बुद्धिमान मनुष्य लोगों के मन को मोह लेता है। नीतिवचन 11:30
- बुरी युक्ति करने वालों के मन में छल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करने वालों को आनन्द होता है। नीतिवचन 12:20
- चतुर मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है, परन्तु मूढ़ अपने मन की मूढ़ता ऊंचे शब्द से प्रचार करता है। नीतिवचन 12:23
- उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है। नीतिवचन 12:25

नीतिवचन 13:12, 14:10, 13, 14, 30, 33, 15:7, 11, 13, 14, 15, 28, 30,
नीतिवचन 13:12, 14:10, 13, 14, 30, 33, 15:7, 11, 13, 14, 15, 28, 30,
- जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है। नीतिवचन 13:12
- मन अपना ही दु:ख जानता है, और परदेशी उसके आनन्द में हाथ नहीं डाल सकता। नीतिवचन 14:10
- हंसी के समय भी मन उदास होता है, और आनन्द के अन्त में शोक होता है। नीतिवचन 14:13
- जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है, वह अपनी चाल चलन का फल भोगता है, परन्तु भला मनुष्य आप ही आप सन्तुष्ट होता है। नीतिवचन 14:14
- शान्त मन, तन का जीवन है, परन्तु मन के जलने से हड्डियां भी जल जाती हैं। नीतिवचन 14:30
- समझ वाले के मन में बुद्धि वास किए रहती है, परन्तु मूर्खों के अन्त:काल में जो कुछ है वह प्रगट हो जाता है। नीतिवचन 14:33
- बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता। नीतिवचन 15:7
- जब कि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के साम्हने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्यों के मन भी। नीतिवचन 15:11
- मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दु:ख से आत्मा निराश होती है। नीतिवचन 15:13
- समझने वाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मूर्ख लोग मूढ़ता से पेट भरते हैं। नीतिवचन 15:14
- दुखिया के सब दिन दु:ख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है। नीतिवचन 15:15
- धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं, परन्तु दुष्टों के मुंह से बुरी बातें उबल आती हैं। नीतिवचन 15:28
- आंखों की चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हड्डियां पुष्ट होती हैं। नीतिवचन 15:30

नीतिवचन 16:1, 2, 5, 9, 20, 23, 24, 32,
नीतिवचन 16:1, 2, 5, 9, 20, 23, 24, 32,
- मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, परन्तु मुंह से कहना यहोवा की ओर से होता है। नीतिवचन 16:1
- मनुष्य का सारा चाल चलन अपनी दृष्टि में पवित्र ठहरता है, परन्तु यहोवा मन को तौलता है। नीतिवचन 16:2
- सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूं, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे। नीतिवचन 16:5
- मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है, परन्तु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है। नीतिवचन 16:9
- जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है। नीतिवचन 16:20
- बुद्धिमान का मन उसके मुंह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है। नीतिवचन 16:23
- मन भावने वचन मधु भरे छते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं। नीतिवचन 16:24
- विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है। नीतिवचन 16:32

नीतिवचन 17:10, 20, 22, 18:2, 12, 15, 19:3, 21,
नीतिवचन 17:10, 20, 22, 18:2, 12, 15, 19:3, 21,
- एक घुड़की समझने वाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता। नीतिवचन 17:10
- जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट-फेर की बात करने वाला विपत्ति में पड़ता है।नीतिवचन 17:20
- मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं। नीतिवचन 17:22
- और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है। नीतिवचन 18:2
- नाश होने से पहिले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहिले नम्रता होती है। नीतिवचन 18:12
- समझ वाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है; और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं। नीतिवचन 18:15
- मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है। नीतिवचन 19:3
- मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है। नीतिवचन 19:21

नीतिवचन 20:5, 27, 21:1, 2, 24, 22:11, 15, 17, 18,
नीतिवचन 20:5, 27, 21:1, 2, 24, 22:11, 15, 17, 18,
- मनुष्य के मन की युक्ति अथाह तो है, तौभी समझ वाला मनुष्य उस को निकाल लेता है। नीतिवचन 20:5
- मनुष्य की आत्मा यहोवा का दीपक है; वह मन की सब बातों की खोज करता है। नीतिवचन 20:27
- राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उस को फेर देता है। नीतिवचन 21:1
- मनुष्य का सारा चाल चलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है, नीतिवचन 21:2
- जो अभिमन से रोष में आकर काम करता है, उसका नाम अभिमानी, और अंहकारी ठट्ठा करने वाला पड़ता है। नीतिवचन 21:24
- जो मन की शुद्धता से प्रीति रखता है, और जिसके वचन मनोहर होते हैं, राजा उसका मित्र होता है। नीतिवचन 22:11
- लड़के के मन में मूढ़ता की गाँठ बन्धी रहती है, परन्तु छड़ी की ताड़ना के द्वारा वह उस से दूर की जाती है। नीतिवचन 22:15
- कान लगा कर बुद्धिमानों के वचन सुन, और मेरी ज्ञान की बातों की ओर मन लगा; नीतिवचन 22:17
- यदि तू उस को अपने मन में रखे, और वे सब तेरे मुंह से निकला भी करें, तो यह मन भावनी बात होगी। नीतिवचन 22:18

नीतिवचन 23:1, 7, 15, 16, 17, 19, 26, 24:12, 17,
नीतिवचन 23:1, 7, 15, 16, 17, 19, 26, 24:12, 17,
- जब तू किसी हाकिम के संग भोजन करने को बैठे, तब इस बात को मन लगा कर सोचना कि मेरे साम्हने कौन है? नीतिवचन 23:1
- क्योंकि जैसा वह अपने मन में विचार करता है, वैसा वह आप है। वह तुझ से कहता तो है, खा पी, परन्तु उसका मन तुझ से लगा नहीं। नीतिवचन 23:7
- हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो, तो विशेष कर के मेरा ही मन आनन्दित होगा। नीतिवचन 23:15
- और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा। नीतिवचन 23:16
- तू पापियों के विषय मन में डाह न करना, दिन भर यहोवा का भय मानते रहना। नीतिवचन 23:17
- हे मेरे पुत्र, तू सुन कर बुद्धिमान हो, और अपना मन सुमार्ग में सीधा चला। नीतिवचन 23:19
- हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चाल चलन पर लगी रहे। नीतिवचन 23:26
- यदि तू कहे, कि देख मैं इस को जानता न था, तो क्या मन का जांचने वाला इसे नहीं समझता? और क्या तेरे प्राणों का रक्षक इसे नहीं जानता? और क्या वह हर एक मनुष्य के काम का फल उसे न देगा? नीतिवचन 24:12
- जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो, और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो। नीतिवचन 24:17

नीतिवचन 25:20, 26:23, 25, 27:9, 11, 19, 23, 28:14
नीतिवचन 25:20, 26:23, 25, 27:9, 11, 19, 23, 28:14
- जैसा जाड़े के दिनों में किसी का वस्त्र उतारना वा सज्जी पर सिरका डालना होता है, वैसा ही उदास मन वाले के साम्हने गीत गाना होता है। नीतिवचन 25:20
- जैसा कोई चान्दी का पानी चढ़ाया हुअ मिट्टी का बर्तन हो, वैसा ही बुरे मन वाले के प्रेम भरे वचन होते हैं। नीतिवचन 26:23
- उसकी मीठी-मीठी बात प्रतीति न करना, क्योंकि उसके मन में सात घिनौनी वस्तुएं रहती हैं; नीतिवचन 26:25
- जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है। नीतिवचन 27:9
- हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान हो कर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करने वाले को उत्तर दे सकूंगा। नीतिवचन 27:11
- जैसे जल में मुख की परछाई सुख से मिलती है, वैसे ही एक मनुष्य का मन दूसरे मनुष्य के मन से मिलता है। नीतिवचन 27:19
- अपनी भेड़-बकरियों की दशा भली-भांति मन लगा कर जान ले, और अपने सब पशुओं के झुण्डों की देखभाल उचित रीति से कर; नीतिवचन 27:23
- जो मनुष्य निरन्तर प्रभु का भय मानता रहता है वह धन्य है; परन्तु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है।नीतिवचन 28:14

नीतिवचन 29:7, 11, 17, 31:6, 10,
नीतिवचन 29:7, 11, 17, 31:6, 10,
- धर्मी पुरूष कंगालों के मुकद्दमे में मन लगाता है; परन्तु दुष्ट जन उसे जानने की समझ नहीं रखता। नीतिवचन 29:7
- मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है। नीतिवचन 29:11
- अपने बेटे की ताड़ना कर, तब उस से तुझे चैन मिलेगा; और तेरा मन सुखी हो जाएगा। नीतिवचन 29:17
- मदिरा उस को पिलाओ जो मरने पर है, और दाखमधु उदास मन वालों को ही देना; नीतिवचन 31:6
- भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है। उस के पति के मन में उस के प्रति विश्वास है। नीतिवचन 31:10

सभोपदेशक
1:13, 16, 17, 2:1, 3, 2:10, 12, 15, 20, 22, 23, 3:11, 17, 18, 4:4, 6, 16, 5:2, 20, 6:2, 7, 9, 7:2, 3, 4, 9, 25, 26, 28, 8:5, 11, 16, 9:1, 3, 9:7, 10:2, 20, 11:10, 12:1,
सभोपदेशक 1:13, 16, 17, 2:1, 3,
- मैं ने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूं; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगें। सभोपदेशक 1:13
- मैं ने मन में कहा, देख, जितने यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन सभों से मैं ने बहुत अधिक बुद्धि प्राप्त की है; और मुझ को बहुत बुद्धि और ज्ञान मिल गया है। सभोपदेशक 1:16
- और मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूं और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूं। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है॥ सभोपदेशक 1:17
- मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। सभोपदेशक 2:1
- मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे।सभोपदेशक 2:3
सभोपदेशक 2:10, 12, 15, 20, 22, 23,
- जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला। सभोपदेशक 2:10
- फिर मैं ने अपने मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूं; क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है। सभोपदेशक 2:12
- तब मैं ने मन में कहा, जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ? और मैं ने मन में कहा, यह भी व्यर्थ ही है। सभोपदेशक 2:15
- तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्रम के विषय जो मैं ने धरती पर किया था निराश हुआ, सभोपदेशक 2:20
- मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उस से उसको क्या लाभ होता है? सभोपदेशक 2:22
- उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। सभोपदेशक 2:23
सभोपदेशक 3:11, 17, 18, 4:4, 6, 16, 5:2, 20,
- उसने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते है; फिर उसने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, तौभी काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता। सभोपदेशक 3:11
- मैं ने मन में कहा, परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का न्याय करेगा, क्योंकि उसके यहां एक एक विषय और एक एक काम का समय है। सभोपदेशक 3:17
- मैं ने मन में कहा कि यह इसलिये होता है कि परमेश्वर मनुष्यों को जांचे और कि वे देख सकें कि वे पशु-समान हैं। सभोपदेशक 3:18
- तब में ने सब परिश्रम के काम और सब सफल कामों को देखा जो लोग अपने पड़ोसी से जलन के कारण करते हैं। यह भी व्यर्थ और मन का कुढ़ना है॥ सभोपदेशक 4:4
- चैन के साथ एक मुट्ठी उन दो मुट्ठियों से अच्छा है, जिनके साथ परिश्रम और मन का कुढ़ना हो॥ सभोपदेशक 4:6
- वे सब लोग अनगिनित थे जिन पर वह प्रधान हुआ था। तौभी भविष्य में होने वाले लोग उसके कारण आनन्दित न होंगे। नि:सन्देह यह भी व्यर्थ और मन का कुढ़ना है॥ सभोपदेशक 4:16
- बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों॥ सभोपदेशक 5:2
- इस जीवन के दिन उसे बहुत स्मरण न रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर उसकी सुन सुनकर उसके मन को आनन्दमय रखता है॥सभोपदेशक 5:20
सभोपदेशक 6:2, 7, 9, 7:2, 3, 4, 9, 25, 26, 28,
- किसी मनुष्य को परमेश्वर धन सम्पत्ति और प्रतिष्ठा यहां तक देता है कि जो कुछ उसका मन चाहता है उसे उसकी कुछ भी घटी नहीं होती, तौभी परमेश्वर उसको उस में से खाने नहीं देता, कोई दूसरा की उसे खाता है; यह व्यर्थ और भयानक दु:ख है। सभोपदेशक 6:2
- मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिये होता है तौभी उसका मन नहीं भरता। सभोपदेशक 6:7
- आंखों से देख लेना मन की चंचलता से उत्तम है: यह भी व्यर्थ और मन का कुढना है। सभोपदेशक 6:9
- जेवनार के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है; क्योंकि सब मनुष्यों का अन्त यही है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा। सभोपदेशक 7:2
- हंसी से खेद उत्तम है, क्योंकि मुंह पर के शोक से मन सुधरता है। सभोपदेशक 7:3
- बुद्धिमानों का मन शोक करने वालों के घर की ओर लगा रहता है परन्तु मूर्खों का मन आनन्द करने वालों के घर लगा रहता है। सभोपदेशक 7:4
- अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है। सभोपदेशक 7:9
- मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि के विषय में जान लूं; कि खोज निकालूं और उसका भेद जानूं, और कि दुष्टता की मूर्खता और मूर्खता जो निरा बावलापन है जानूं। सभोपदेशक 7:25
- और मैं ने मृत्यु से भी अधिक दृ:खदाई एक वस्तु पाई, अर्थात वह स्त्री जिसका मन फन्दा और जाल है और जिसके हाथ हथकडिय़ां है; (जिस पुरूष से परमेश्वर प्रसन्न है वही उस से बचेगा, परन्तु पापी उसका शिकार होगा) सभोपदेशक 7:26
- जिसे मेरा मन अब तक ढूंढ़ रहा है, परन्तु नहीं पाया। हजार में से मैं ने एक पुरूष को पाया, परन्तु उन में एक भी स्त्री नहीं पाई।सभोपदेशक 7:28
सभोपदेशक 8:5, 11, 16, 9:1, 3,
- जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्याय का भेद जानता है। सभोपदेशक 8:5
- बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है।सभोपदेशक 8:11
- जब मैं ने बुद्धि प्राप्त करने और सब काम देखने के लिये जो पृथ्वी पर किए जाते हैं अपना मन लगाया, कि कैसे मनुष्य रात-दिन जागते रहते हैं; सभोपदेशक 8:16
- यह सब कुछ मैं ने मन लगाकर विचारा कि इन सब बातों का भेद पाऊं, कि किस प्रकार धर्मी और बुद्धिमान लोग और उनके काम परमेश्वर के हाथ में हैं; मनुष्य के आगे सब प्रकार की बातें हैं परन्तु वह नहीं जानता कि वह प्रेम है व बैर। सभोपदेशक 9:1
- जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उस में यह एक दोष है कि सब लोगों की एक सी दशा होती है; और मनुष्यों के मनों में बुराई भरी हुई है, और जब तक वे जीवित रहते हैं उनके मन में बावलापन रहता है, और उसके बाद वे मरे हुओं में जा मिलते हैं। सभोपदेशक 9:3
सभोपदेशक 9:7, 10:2, 20, 11:10, 12:1,
- अपने मार्ग पर चला जा, अपनी रोटी आनन्द से खाया कर, और मन में सुख मान कर अपना दाखमधु पिया कर; क्योंकि परमेश्वर तेरे कामों से प्रसन्न हो चुका है॥ सभोपदेशक 9:7
- बुद्धिमान का मन उचित बात की ओर रहता है परन्तु मूर्ख का मन उसके विपरीत रहता है। सभोपदेशक 10:2
- राजा को मन में भी शाप न देना, न धनवान को अपने शयन की कोठरी में शाप देना; क्योंकि कोई आकाश का पक्षी तेरी वाणी को ले जाएगा, और कोई उड़ाने वाला जन्तु उस बात को प्रगट कर देगा॥ सभोपदेशक 10:20
- अपने मन से खेद और अपनी देह से दु:ख दूर कर, क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ हैं। सभोपदेशक 11:10
- अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इस से पहिले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएं, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगाता। सभोपदेशक 12:1

श्रेष्ठगीत 3:11, 4:9, 5:2
श्रेष्ठगीत 3:11, 4:9, 5:2
- हे सिय्योन की पुत्रियों निकल कर सुलैमान राजा पर दृष्टि डालो, देखो, वह वही मुकुट पहिने हुए है जिसे उसकी माता ने उसके विवाह के दिन और उसके मन के आनन्द के दिन, उसके सिर पर रखा था॥ श्रेष्ठगीत 3:11
- हे मेरी बहिन, हे मेरी दुल्हिन, तू ने मेरा मन मोह लिया है, तू ने अपनी आंखों की एक ही चितवन से, और अपने गले के एक ही हीरे से मेरा हृदय मोह लिया है। श्रेष्ठगीत 4:9
- मैं सोती थी, परन्तु मेरा मन जागता था। सुन! मेरा प्रेमी खटखटाता है, और कहता है, हे मेरी बहिन, हे मेरी प्रिय, हे मेरी कबूतरी, हे मेरी निर्मल, मेरे लिये द्वार खोल; क्योंकि मेरा सिर ओस से भरा है, और मेरी लटें रात में गिरी हुई बून्दोंसे भीगी हैं। श्रेष्ठगीत 5:2
https://www.yeshukimahima.in/2021/05/bible-trivia-in-hindi.html